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कला संकाय:

बी.ए. (प्रथम वर्ष)

विषय: हिन्दी, प्राचीन इतिहास, भूगोल, अग्रेजी, समाजशास्त्र, गृहविज्ञान एवं संस्कृत

न्यूनतम अर्हता: इण्टमीडिएट/समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण होना अनिवार्य है।

प्रवेश प्रक्रिया (स्नातक स्तर पर)

महाविद्यालय में स्नातक स्तर पर कला संकाय का आवेदन-पत्र अभ्यर्थी कार्यालय से प्राप्त कर उसे पूर्ण रूप् से भर कर निर्धारित तिथि तक कार्यालय में जमा करें। आवेदन-पत्र के साथ निम्नलिखित दस्तावेज संलग्न करें-

1. हाईस्कूल अंक-पत्र एवं प्रमाण-पत्र की छायाप्रति।

2. इण्टरमीडिएट (10+2) योग्यता प्रदायी परीक्षा के अंक-पत्र एवं प्रमाण-पत्र की छाया प्रति।

3. पूर्व सथा के प्रधानाचार्य/प्रधानाचार्य द्वारा निर्गत चरित्र प्रमाण-पत्र की मूल प्रति (प्रवेश के समय)।

4. स्थानान्तरण प्रमाण-पत्र की मूल प्रति (प्रवेश के समय)।

5. योग्यता प्रदायी परीक्षा के बाद अगर अन्तराल हो तो उसके लिए शपथ-पत्र।

शुल्क: स्नातक स्तर पर कला संकाय में विद्यार्थि ओं का निर्धारित शुल्क दो किस्तों में देय होगा, जिसकी जानकारी महाविद्यालय कार्यालय से प्रापत की जा सकती है।

प्रवेश सम्बन्धी निर्देश:

1. अभ्यर्थी निदेशों को ध्यानपूर्वक पढे़ं और आवेदन पत्र की सभी प्रविष्टियाँ स्पष्ट रूप से स्वयं भरें। पूर्ण तथा त्रुटिरहित आवेदन पत्र ही स्वीकार होंगे।

2. यदिा अभ्यर्थी आवेदन पत्र में गलत सूचना देता है तो प्रवेश के समय या प्रवेश के बाद जानकारी होने पर उसका प्रवेश निरस्त कर दिया जायेगा। आवेदन पत्र में सही सूचना देने के लिए अभ्यर्थी स्वयं उत्तरदायी होगा।

3. अभ्यर्थी विषय समूह / विषय का चयन सावधानीपूर्वक करें। इसके लिए अभ्यर्थी प्रवेश-साक्षात्कार समिति से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता कर सकता है। प्रवेश के 15 दिन के भीतर अभ्यर्थी महाविद्यालय के प्राचार्य की अनुमति से विषय परिवर्तन करा सकते है। किन्तु यह सम्बन्धित विषय में सीटों की उपलब्धता पर निर्भर होगा।

4. दो वर्षों से अधिक शैख्कि अन्तराल वाले अभ्यर्थी को स्नातक कक्षाओं में अन्तराल अवधिक का नोटरी शपथ-पत्र प्रस्तुत करने पर ही महाविद्यालय द्वारा प्रवेश दिया जायेगा।

5. प्रवेश समिति के समक्ष अभ्यर्थी का स्वयं का उपस्थित होना अनिवार्य है।

6. प्रवेश के सम्बन्ध में निर्णय का अधिकार प्रवेश-समिति का होगा, जिसकी संस्तुति पर ही अभ्यर्थी प्रवेश पा सकेंगे।

7. किसी भी अभ्यर्थी को प्रवेश देने या उसका प्रवेश निरस्त करने का अधिकार प्राचार्य को होना।